रंग जिन्दगी के: अध्याय 1: कुछ दिल से
आखिर ये पन्ना करूँ मैं किसके नाम?
अगर दिल कहता तो लिखता वो नाम।
दिल के टूटे टुकड़ों से आती एक आवाज,
अब कुछ तो कर तू यही तो है तेरा काम।
दिल का वो अनजान खूबसूरत सा शहर,
जो रोशन था कभी इश्क की रोशनी में।
कब चाँदनी रोशनी में जलकर ख़ाक हुआ,
इतनी साजिशें हुई कुछ पता ही नहीं लगा।
ना जाने क्यों दिल की बनी ही नहीं प्यार से,
ये बेदर्द दर्द ही गहरा दोस्त रहा इसका।